खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी.. ये कुछ पंक्तियाँ हमें बचपन से याद कराई गई हम सभी ने बचपन से ही रानी लक्ष्मी बाई की कई कहानियाँ पड़ी हैं की किस तरह वो बेखौफ अंग्रेजों से लड़ गई थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।..ये कुछ पंक्तियाँ हमें बचपन से याद कराई गई हम सभी ने बचपन से ही रानी लक्ष्मी बाई की कई कहानियाँ पड़ी हैं की किस तरह वो बेखौफ अंग्रेजों से लड़ गई थी।
मगर आज हम रानीलक्ष्मीबाई की बात नहीं कर रहे बल्कि एक ऐसी महिला के बारे मे 1857 के विद्रोह में झांसी की रानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी। जिसके हौसले और बहादुरी को इतिहास के दस्तावेजों में तो जगह नहीं मिली लेकिन आम लोगों ने उसे अपने दिलों में जगह दी उन्हें किस्से कहानियों के जरिए पीढ़ी दर पीढ़ी जिंदा रखा।
और सालों बाद उनकी कहानियां हाशिये पर जिंदा लोगों के लिए प्रेरणा बनी इसलिए घोड़े पर सवार उनकी मूर्तियां आज कई शहरों में दिख जाती हैं हम बात कर रहे हैं झलकारी बाई की। झलकारी बाई भी अंग्रेजों से डट कर लड़ी थी झांसी के पास भोजला गांव के लोगों का कहना है कि झलकारी बाई उसी गांव से थी।
झलकारी बाई एक गरीब दलित बुनकर परिवार से आती थी।उनकी बहादुरी के कई किस्से हैं भजले गाँव में आज भी प्रसिद्ध हैं। कई किताबों में जिक्र है कि उन्होंने बचपन में बाघ को मार डाला था, और अपने गाँव से डाकू को खदेड़ दिया था।
उनके पति पूरण एक बहादुर पहलवान थे और झांसी की रानी की की सेना में एक सैनिक थे। जो अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए।
लेकिन झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई तक कैसे पहुंची और आखिर हाशिए पर रहने वाले लोग झांसी की रानी के साथ क्यों खड़े हुए ?
आसपास के अनेक छोटे-बड़े राजाओं और सामंतों ने अंग्रेजो के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई की मदद नहीं की तो सवाल था की रानी क्या करें झलकारी बाई झांसी की रानी की करीबी बन गई लोग बताते हैं।
झलकारी बाई झांसी की रानी की बाई की तरह दिखती थी और शायद यही वजह थी कि वह झांसी की रानी का वेश धारण कर अंग्रेजों को चकमा दे पाई और इसके बाद जो हुआ वो झलकारी बाई का इतिहास बन गया सरकारी दस्तावेजों में नहीं लेकिन लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गई राजनीतिक सामाजिक चेतना आने के बाद हाशिये पर डाल दिए गए इन लोगों ने जंगे आजादी में अपनी विरासत की दावेदारी की।
झलकारी बाई की प्रेरणा का असर हम आज देख सकते हैं जगह-जगह लगी उनकी मूर्तियां उनके नाम पर जारी टिकट अभी गवाह है कि वह दलित समाज की चेतना और गर्व की प्रतीक है। लेकिन ये बड़ा सवाल है की दलित समाज की एक ऐसी महिला जिसने रानी लक्ष्मी बाई की तरह ही बेख़ौफ़ अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़कर देश की स्वतंत्रता में अपनी हिस्सेदारी दी, जिन्हे हाशिये पर रहना नामंज़ूर था उनका ज़िक्र सिर्फ दलित समाज तक ही क्यों सिमित रह गया? आज हम झांसी की झलकारी को JJN के इस मंच से नमन करते हैं और अंग्रेज़ों के खिलाफ उनके बलिदान को सलाम