देहरादून में रिस्पना बिंदाल जैसी नदियों के किनारे बसी मलिन बस्तियां एक गंभीर समस्या हैं। वोटबैंक की राजनीति के चलते नेताओं ने इन बस्तियों को बसाया, जिससे भारी बारिश में जान-माल का नुकसान हो रहा है।
DEHRADUN NEWS-: उत्तराखंड (Uttarakhand) राज्य गठन के बाद से देहरादून (Dehradun) सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों में नदियों-नालों के किनारे अवैध रूप से बसाई गई मलिन बस्तियां अब आपदा का बड़ा कारण बन रही हैं। बता दे बाहरी राज्यों से आकर लोगों ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर बस्तियां बसाई, जिससे नदी-नालों के प्राकृतिक बहाव में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। इस पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) और उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से बार-बार जवाब तलब करते हुए भूमि को अतिक्रमणमुक्त कराने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल बीते दिनों दून घाटी में बादल फटने की घटना में करीब 40 लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश लोग नालों के किनारे अवैध कब्जे वाली बस्तियों में रह रहे थे। स्थानीय प्रशासन के अनुसार, राज्य गठन के समय देहरादून जिले में मात्र 75 मलिन बस्तियां थीं, जो 2002 में 102, 2008 में 129 और 2016 तक 150 हो गईं। अब इनकी संख्या 200 के करीब पहुंच चुकी है। इसी तरह पूरे राज्य में 2016 के सर्वे के अनुसार 582 मलिन बस्तियां थीं, जो अब बढ़कर करीब 700 बताई जा रही हैं।
आपको बता दे देहरादून शहर की रिस्पना और बिंदाल जैसी बरसाती नदियों के किनारों पर कई किलोमीटर तक फ्लड जोन क्षेत्र में अवैध कब्जे हैं। इसी कारण इस साल बिंदाल और रिस्पना नदियां दो बार पुलों को छूते हुए बहीं और आसपास के इलाकों में पानी भर गया। तो वही टोंस, जाखन, सहस्त्रधारा और तमसा नदियां भी कई बार घरों के दरवाजों तक पहुंच चुकी हैं, जो भविष्य में बड़े जल प्रलय का संकेत दे रही हैं। इसके अलावा 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 7.71 लाख से अधिक आबादी ने 1.53 लाख से अधिक मकान सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाए थे। इनमें 37 प्रतिशत नदियों-नालों के किनारे, 10 प्रतिशत केंद्र सरकार की भूमि और 44 प्रतिशत राज्य सरकार की भूमि पर कब्जे थे। अनुमान है कि अब इनकी संख्या 10 लाख के आसपास हो गई है। इनमें बड़ी संख्या में बिजनौर, पीलीभीत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, असम, बिहार और झारखंड से आए लोग हैं। वही रिपोर्टों में कुछ रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों के भी होने की आशंका जताई गई है।
ऐसे में एनजीटी ने बिंदाल, रिस्पना, गौला, कोसी, गंगा, किच्छा समेत अन्य नदियों के किनारे अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं। लेकिन राजनीतिक दबाव और वोट बैंक की राजनीति के चलते कार्रवाई टाली जा रही है। कांग्रेस सरकार ने 2016 में इन बस्तियों को नियमित करने की घोषणा की थी, जिसे बाद में भाजपा सरकार ने रोक दिया, लेकिन बस्तियों का विस्तार जारी है। तो वही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि “नदी-नालों की सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किसी भी स्थिति में सहन नहीं किया जाएगा। नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होने से आपदा का खतरा बना हुआ है। एनजीटी और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए अतिक्रमण हटाया जाएगा।”
वहीं नगर आयुक्त नमामि बंसल (Municipal Commissioner Namami Bansal) का कहना है कि 2016 के बाद के अतिक्रमणों को जल्द ही हटाया जाएगा। जिला प्रशासन और एमडीडीए भी इस संबंध में एनजीटी और उच्च न्यायालय को आश्वासन दे चुके हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक इन मलिन बस्तियों को हटाकर नदी-नालों का प्राकृतिक प्रवाह बहाल नहीं किया जाता, तब तक दून घाटी में जल प्रलय जैसी आपदाओं का खतरा मंडराता रहेगा।