नैनीताल समेत पूरे उत्तराखंड के लिए सबक लेने का दिन आज,जानिए क्यों और क्या है खास ??

8 की तिथि सरोवरनगरी के लिये बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए क्युकी 18 नवंबर 1841 को ही इस नगर को वर्तमान स्वरूप में बसाने वाले पीटर बैरन के नगर में आगमन की बात कही जाती है

नैनीताल समेत पूरे उत्तराखंड के लिए सबक लेने का दिन आज,जानिए क्यों और क्या है खास ??
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NANITAL NEWS; 18 की तिथि सरोवरनगरी के लिये बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए क्युकी 18 नवंबर 1841 को ही इस नगर को वर्तमान स्वरूप में बसाने वाले पीटर बैरन के नगर में आगमन की बात कही जाती है, वहीं सितंबर महीने  की इसी तिथि को 140 साल पहले नगर में जो हुआ, उसे याद कर नैनीताल वासियों की रूह आज भी कांप उठती है।
1880 में इस तिथि को यानी 18 सितंबर 1880 को हुई एक दुर्घटना से सबक लेकर नगर के अंग्रेज नियंताओं ने नगर में नालों के निर्माण के ऐसे प्रबंध किये जो आज भी नगर को पूरी तरह से सुरक्षित रखे हुए हैं, और ‘नैनीताल मॉडल’ के रूप में दुनिया के अन्य पर्वतीय नगरों को भी कैसी भी जल प्रलय से बचाने की क्षमता रखते हैं। लेकिन देश आजाद होने के बाद हर साल नगर में इस दिन 1880 की याद करते हुए उस घटना में दिवंगत हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता भर निभाई जाती है, किंतु नगर वासी इन नालों को अतिक्रमण और गंदा कर नगरवासी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की राह पर नजर आते हैं, और कोई भी सही मायने में सबक लेता नहीं दिखता है। नतीजा, घटना की पुनरावृत्ति के रूप में सामने न आये, इसकी दुआ ही की जा सकती है।

तो वही अंग्रेज लेखक एटकिंसन के अनुसार आधिकारिक तौर पर 18 नवम्बर 1841 को नगर में आये एक अंग्रेज पीटर बैरन द्वारा नगर के रूप में बसायी गयी । ऐसे में सरोवरनगरी नैनीताल में कम-कम करके भी 1880 तक नगर में उस दौर के लिहाज से काफी निर्माण हो चुके थे और नगर की जनसंख्या लगभग ढाई हजार के आसपास पहुँच गयी थी, ऐसे में 18 सितम्बर का वो ‘काले शनिवार’ का मनहूस दिन आ गया जब केवल 40 घंटे में हुयी 35 इंच यानी 889 मिमी बारिश के बाद आठ सेकेण्ड के भीतर नगर में वर्तमान रोप-वे के पास ऐसा विनाशकारी भूस्खलन हुआ कि 151 लोग यानी नगर की 6 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या काल कवलित हो गयी थी। साथ ही उस जमाने क नगर का सबसे विशाल ‘विक्टोरिया होटल’ और मि. बेल के बिसातखाने की दुकान समेत तत्कालीन बोट हाउस क्लब के पास स्थित वास्तविक नैनादेवी मन्दिर जमींदोज हो गऐ। हालांकि ये अलग बात है कि इस विनाश ने नगर को वर्तमान फ्लैट मैदान के रूप में अनोखा तोहफा दिया। वैसे इससे पहले भी वर्तमान स्थान पर घास के हरा मैदान होने और 1843 में ही यहाँ नैनीताल जिमखाना की स्थापना होने को जिक्र मिलता है।

बहरहाल, 1880 के बाद बीते सालों में, खासकर साल 2010 में ठीक 18 सितंबर और 2011 में भी सितंबर महीने में प्रदेश और निकटवर्ती क्षेत्रों में जल प्रलय जैसे कई हालात आये। 2010 में नगर की सामान्य 248 सेमी से करीब दोगुनी 413 सेमी बारिश रिकार्ड की गई, बावजूद नगर पूरी तरह सुरक्षित रहा। इसका श्रेय नगर के नालों को दिया जाता है। लेकिन नगर ने सितंबर 2015 में नगर के नालों में अतिक्रमण का वह रूप भी देखा जब इससे कुछ दिन पहले ही नालों से हटाये गये होटलों के स्थान से आये मलबे से माल रोड पर मलबे का पहाड़ बन गया था। ऐसे में अतिक्रमण न हटा होता तो होटलों में भारी तबाही निश्चित थी। 2021 में  नैनीताल की झील का पानी ऐतिहासिक तौर पर सड़कों पर बहने लगा। घरों-दुकानों में फंसे लोगों को बचाने के लिये सेना तक बुलानी पड़ी। लेकिन माता नयना देवी की कृपा कहें कि नैनीताल मॉडल का प्रभाव, कहीं कोई जनहानि नहीं हुई। जिसको नगर के बुजुर्ग, आम जन, अधिकारी हर कोई इस बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन कोई इस घटना से सबक लेता नहीं दिखता।

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