उत्तराखंड में सरकार स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठा रही है। आपको बता दें राज्य के स्कूलों में दूसरे विषयों के साथ गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषाएं भी पढ़ाई जाएगी।
उत्तराखंड(Uttarakhand) में सरकार स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठा रही है। आपको बता दें राज्य के स्कूलों में दूसरे विषयों के साथ गढ़वाली-कुमाऊंनीभाषाएं भी पढ़ाई जाएगी। इसके लिए कवायद तेज हो गई है और लोकभाषा परआधारित पुस्तकों के लिए सिलेबस भी तैयार किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में जल्द गढ़वाली(Garhwali), कुमाऊंनी(Kumaoni)और जौनसारी(Jaunsari) स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगी। SCERT यानी स्टेट काउंसिल आफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग ने इस संबंध में Curriculum तैयार किया है। पहले चरण में गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी लोकभाषा से संबंधित पुस्तकें तैयार की जा रही हैं बाद में दूसरी लोक भाषाओं को भी चरणबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा।
बता दें लोकभाषा आधारित पुस्तकों को लिखने के लिए गढ़वाली भाषा में विशेषज्ञ के रूप में डा. उमेश चमोला(Dr. Umesh Chamola), कुमाऊंनी के लिए डा. दीपक मेहता(Dr. Deepak Mehta) और जौनसारी के लिए सुरेंद्र आर्यन(Surendra Aryan) योगदान दे रहे हैं। कक्षावार पुस्तकों के लेखन के लिए समन्वयक के रूप में डा. अवनीश उनियाल, सुनील भट्ट, गोपाल घुघत्याल, डा. आलोक प्रभा पांडे और सोहन सिंह नेगी काम कर रहे हैं। गढ़वाली भाषा के लेखक मंडल में गिरीश सुंदरियाल, धर्मेंद्र नेगी, संगीता पंवार और सीमा शर्मा, कुमाऊंनी भाषा के लेखक मंडल में गोपाल सिंह गैड़ा, रजनी रावत, डा. दीपक मेहता, डा. आलोक प्रभा और बलवंत सिंह नेगी शामिल हैं। जौनसारी भाषा लेखन मंडल में महावीर सिंह कलेटा, हेमलता नौटियाल, मंगल राम चिलवान, चतर सिंह चौहान और दिनेश रावत शामिल हैं |