शायद आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएए पर बात करते हुए एक नाम लिया था जिस पर उन्होंने काफी जोर दिया था , वों नाम था जोगेंद्र नाथ मंडल का .आज इन्हीं जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्मदिन है.
भारत में ये नाम कुछ अनसुना सा लगता है लेकिन पाकिस्तान की शुरुआती राजनीति में ये नाम काफी प्रभावी रहा है. दरअसल मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री थे, जो तीन साल में ही अपने पद से इस्तीफा देकर भारत लौट आए थे. इसकी वजह थी वहां अल्पसंख्यकों पर होने वाली हिंसा और भेदभाव.
जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म आज ही के दिन 1904 में बिरिसल जिले जो वर्तमान में बांग्लादेश में है वहा हुआ था. मंडल जिस समुदाय से आते थे, उसे तब हिंदू जाति से बाहर माना जाता था. अपने समुदाय को हिंदुओं में बराबरी का हक दिलाने के लिए तब मंडल ने एक सामाजिक आंदोलन शुरू किया था . इस आंदोलन से वों दलित चिंतक और लीडर के तौर पर उभरे थे.
जोगेंद्र नाथ मण्डल सुभाषचंद्र बोस से काफी प्रभावित थे उन्होंने आजादी की लड़ाई में भी बढ़ चढ़ कर योगदान दिया था लेकिन वों राष्ट्रीय कांग्रेस की के नहीं बल्कि मुस्लिम लीग से जुड़े हुए आंदोलन मे हिस्सा लेते थे . इसकी वजह ये थी कि वे अपनी नमूसूरा जाति के प्रति भेदभाव को लेकर हिंदू वर्ण व्यवस्था से नाराज थे.
लेकिन इसका एक बड़ा कारण उनकी मोहम्मद अली जिन्ना से दोस्ती थी. ये भी बताया जाता है कि साल 1946 में बंगाल दंगों के दौरान मंडल ने दलित समुदाय से कहा था कि वे मुसलमानों के खिलाफ किसी भी हिंसा मे शामिल नया हो . इससे वों जिन्ना के और करीब आ गए.
जब भारत के विभाजन की बात चली. तब जिन्ना को किसी ऐसे शख्स की जरूरत थी, जो पाकिस्तान में उपस्थित अल्पसंख्यक समुदाय के बीच ताकतवर तो हो लेकिन जो जिन्ना से ज्यादा दमदार न हो. यानी एक मायने में देखा जाए तो वे पाकिस्तान में बहुसंख्यक मुसलमानों और अल्पसंख्यक हिंदुओं के बीच संतुलन के लिए किसी लीडर की तलाश में थे.
ऐसे में जोगेंद्र नाथ से बेहतर विकल्प नहीं जिन्ना के पास नहीं था. मण्डल जिन्ना के समर्थक तो थे ही, साथ ही हिंदुओं में लोकप्रिय भी थे.
तो इस तरह से बंटवारे के साथ मंडल पाकिस्तान चले गए. वहां मंडल पाकिस्तान के संविधान सभा के सदस्य और अस्थायी अध्यक्ष बने और नए बने देश के कानून और श्रम के पहले मंत्री की जिम्मेदारी उन्हें मिली. मण्डल कराची में रहने और वही से कामकाज देखने लगे.
हालांकि कुछ ही समय बाद मण्डल को अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा भेदभाव दिखने लगा . पाकिस्तान में लगातार हिंदुओं के साथ हिंसा की खबरों से मंडल परेशान हो गए . उन्होंने कई बार उस समय के पाकिस्तान के प्राधानमंत्री लियाकत अली खान से इस पर कार्यवाही करने का अनुरोध भी किया.लेकिन उनकी बातों को नकार दिया गया।
आखिरकार बंटवारे के तीन ही सालों मे मण्डल ने इन सब बातों से परेशान होकर लियाकत सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए.
तब तक जिन्ना की मौत भी हो चुकी थी और मंडल का दलित-मुस्लिम एकता का सपना भी काफी हद तक टूट चुका था. भारत लौटने के बाद दलितों के साथ अन्याय से आहत मंडल गुमनामी की जिंदगी जीने लगे और अक्टूबर 1968 में पश्चिम बंगाल में उनका देहांत हो गया.
बता दें कि सालभर पहले पीएम मोदी ने इन्हीं मंडल का जिक्र करते हुए कहा था कि कैसे एक प्रचंड दलित नेता को पाकिस्तान के चुनाव पर गुमनामी की जिंदगी और मौत मिली, वहीं भारत के साथ पर डॉ भीमराव अंबेडकर संविधान निर्माता के तौर पर आज तक जीवित हैं.