आज कल देश मे सिर्फ दो ही चीज है जिसके बारे मे हर कोई बात कर रहा है एक किसान आंदोलन ओर दूसरा राकेश टिकैत पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ एक नाम जो आंदोलन में मुख्य तौर पर उभरा है वह है भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का। राकेश टिकैत की पहचान ऐसे नेता की है जो धरना-प्रदर्शनों के साथ-साथ किसानों के व्यवहारिक हित की बात रखते हैं
52 वर्षीय राकेश टिकैत ने जब ऐलान किया कि ‘देश का किसान सीने पर गोली खाएगा, पर पीछे नहीं हटेगा.’ उन्होंने ये धमकी भी दी कि ‘तीनों कृषि क़ानून अगर वापस नहीं लिये गए, तो वों आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन धरना-स्थल खाली नहीं करेंगे.’ तो किसान आंदोलन मे एक नई जान आ गाई और 26 जनवरी की घटना के बाद जो आंदोलन हल्का होता नजर आ रह था उसमे एक नई ऊर्जा का संचार हो गया ।
उनके इस तेवर ने लोगों को नामी किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की याद दिलाई, जिन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाक़ा सम्मान से ‘बाबा टिकैत’ या ‘महात्मा टिकैत’ कहता है.महेंद्र सिंह टिकैत उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय किसान नेता रहे. वे भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी थे और क़रीब 25 साल तक वे किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्ष करते रहे.
1985 तक टिकैत को कम ही लोग जानते थे. मगर उसके बाद, स्थानीय स्तर पर बिजली के दाम और उससे जुड़ी हुई समस्याओं को लेकर कुछ प्रदर्शन हुए जिनमें प्रशासन से टकराव के बाद युवा किसानों ने ‘बाबा टिकैत’ से उनका नेतृत्व करने की गुज़ारिश की और टिकैत ज़िम्मेदारी लेते हुए नौजवानों के साथ खड़े हो गये.
महेंद्र सिंह टिकैत की सबसे बड़ी ताक़त थी कि वे अंत तक धर्म-निरपेक्षता का पालन करते रहे. उनकी बिरादरी के किसानों के अलावा खेती करने वाले मुसलमान भी उनकी एक आवाज़ पर उठ खड़े होते थे, और इसी के दम पर उन्होंने उस ‘जगह’ को भरने का काम किया जो किसानो के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह के बाद खाली हुई थी.”
टिकैत परिवार मूल रूप से एक किसान परिवार है. महेंद्र सिंह टिकैत के छोटे भाई भोपाल सिंह दिल्ली में अध्यापक थे और गाँव में खेती का काम टिकैत संभालते रहे.टिकैत के घर चार लड़के और तीन लड़कियाँ हुईं. इनमें से नरेश टिकैत, जिन्हें जवानी में 100 और 200 मीटर रेस का चैम्पियन कहा जाता था, वो सबसे बड़े हैं. नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और इलाक़े की एक बड़ी खाप पंचायत ‘बालियान खाप’ के मुखिया भी हैं. बालियान खाप में मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के 80 से ज़्यादा गाँव शामिल हैं.
उनके बाद राकेश टिकैत हैं राकेश टिकैत ने एमए किया है. उनके पास वक़ालत की डिग्री भी बताई जाती है. वे भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और उनका संगठन किसानों के संयुक्त मोर्चे में भी शामिल है.तीसरे और चौथे नंबर पर हैं, नरेंद्र और सुरेंद्र टिकैत जो स्थानीय शुगर मिलों में काम करते हैं और खेती का काम संभालते हैं.
“राकेश टिकैत साल 1985 में दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हुए थे. कुछ वक़्त बाद प्रमोशन हुआ और वे सब-इंस्पेक्टर बने. लेकिन उसी दौर में बाबा टिकैत का आंदोलन अपने चरम पर था. वे किसानों के लिए बिजली के दाम कम करने की माँग कर रहे थे. सरकार उनसे परेशान थी क्योंकि उन्हें बड़ा जन-समर्थन प्राप्त था. उसी समय राकेश टिकैत पर अपने पिता से आंदोलन ख़त्म कराने का दबाव बनाया गया. लेकिन राकेश टिकैत ने नौकरी छोड़कर पिता के आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया.”
महेंद्र सिंह टिकैत की एक लंबी बीमारी के बाद 2011 में मृत्यु हो गई. उन्होंने अपने दौर में किसानों के लिए कई मोर्चे खोले. उन्होंने हमेशा कोशिश की कि वे राजनीति से दूर रहें. वे बार-बार इस बात पर ज़ोर देते रहे कि वो किसानों के एक सामाजिक संगठन का नेतृत्व करते हैं.
मगर उनके बेटे राकेश टिकैत ने राजनीति से परहेज़ नहीं रखा. साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसे वो हार गये थे. उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई.
राकेश टिकैत को यह पता है कि उनकी दो ताक़त हैं. एक है किसानों का कैडर, और दूसरा है ‘खाप’ पंचायत संगठन जिसमें टिकैत परिवार की काफ़ी इज़्ज़त है.”2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों की ट्रैक्टर रैली को लेकर राकेश टिकैत दिल्ली गेट तक आ गये थे. उस समय भी किसानों और दिल्ली पुलिस के बीच ज़बरदस्त टकराव हुआ था.उस समय टिकैत के आलोचकों ने कहा था कि ‘भोले-भाले किसानों को लेकर राकेश टिकैत ने यह स्टंट अपनी राजनीतिक महत्वकाक्षाएं पूरी करने के लिए किया जिसका किसानों के हित में कोई नतीजा नहीं निकला.’
वहीं राकेश टिकैत जो फ़िलहाल ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं, और उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है की जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हो जाती वों पीछे नहीं हटेंगे मंगलवार दोपहर भी राकेश टिकैत अपना खाना लेकर पुलिस बैरिकेडिंग के पास पहुंचे और वहाँ जमीन पर बैठकर खाना खाया। टिकैत ने पुलिस बैरिकेड के नीचे बैठकर खाना खाते हुए वीडियो भी बनवाया। टिकैत ने कहा कि किलेबंदी के बाद सरकार आंदोलन पर बैठे लोगों की रोटीबंदी की तरफ जा रही है। चारों तरफ सड़कों पर सीमेंट से कीलें लगवा दी गई हैं और कंटीले तारों से बंद कर दिया गया है। इसी के विरोध में हमने रोटी खाकर प्रदर्शन किया है। राकेश टिकैत ने पुलिस चेतावनी लिखी बैरिकेड के नीचे बैठकर खाना खाया।
आज किसानों ने किसान आंदोलन को सफल बनाए जाने के लिए जींद मे एक महापंचायत भी बुलाई है जिसमे खुद राकेश टिकैत भी हिस्सा लेंगे इस महापंचायत के बाद ये किसान आंदोलन अपनी एक नई दिशा लेगा .अब देखना ये होगा की आखिर ये आंदोलन कहाँ तक जाता है ओर क्या सरकार किसानों के आगे अपने हथियार डालेगी या किसान थक हार कर वापस चले जाएंगे।