चमोली. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत इन दिनों कुमाऊं के अंतिम छोर पर भ्रमण कर रहे हैं। इस सिलसिले में वो चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जो सीमान्त क्षेत्र कहलाये जाते हैं. दौरे की जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया के मध्यम से शेयर की है. दौरान वो 2017 में कांग्रेस प्रत्याशियों को मिली हार का आंकलन भी करेंगे। उन्होंने कहा कि तो एक दो स्थानों को छोड़कर कांग्रेस के उम्मीदवार को 2012 में जितने मत प्राप्त हुये थे, उन मतों को बचाए रखने में सफल हुये हैं.
उन्होंने बताया कि चंपावत में जितने मत पाकर 2012 में कांग्रेस के उम्मीदवार 7000 वोटों से जीते थे. लेकिन उतने ही मत पाकर उम्मीदवार बड़े अंतर से हार गये. और विपक्ष को जो मत जाते थे उन मतों का एकमुश्त ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो गया. जिस कारण कांग्रेस इन सीमांत क्षेत्रों में पराजित हुई.
कांग्रेस के प्रत्याशियों का हारना मेरे लिये बड़ा आघात था. मैंने अपनी डेवलपमेंटल स्ट्रेटेजी में इन पूर्व सीमांत क्षेत्रों और अब पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर और उधर चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी के जिले हैं, यहां के लिये योजनाबद्ध तरीके से असंभव कार्यों को संभव करवाया था.
उन्होंने आगे लिखा कि मैंने यहां के मानवीय व डेवलपमेंटल पहलू दोनों पहलु के लिये योजनाबद्ध तरीके से काम किया। यह अलग बात है उसका जो फायदा मैं उम्मीद कर रहा था. चुनाव में वो नहीं मिल पाया। लेकिन यह तो सत्यता है कि इन क्षेत्रों में हमारा मत प्रतिशत 2012 का जब हम सरकार बनाने में सफल हुये थे, वो वैसे का वैसा बना रहा।
यह अलग बात है कि मेरी पार्टी में किसी ने इस तथ्य को एक्नॉलेज नहीं किया। मोदी के प्रचंड वेग के खिलाफ भी हम 2017 में अपना 2012 का आधार वोट बचाये रखने में सफल हुये। और मेरे इस भ्रमण का उद्देश्य वो गैप, जिस गैप ने भाजपा को विजयी बनाया है. उसका तोड़ ढूंढना है। देखता हूंँ, कुछ तोड़ ढूंढ पाया तो इन क्षेत्रों व कांग्रेस के लिये हो सकता है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि शायद यह मेरी आखरी सेवा हो। मेरे इन क्षेत्रों के विशेष उल्लेख करने से यह आश्रय न लगाया जाए कि हमारी सरकार ने मध्य उत्तराखण्ड के जिलों भाभर, तराई, देहरादून व हरिद्वार के लिये पृथक-पृथक व समन्वित योजना बनाई। इन क्षेत्रों के लिये बनाई गई योजनाओं का मैं पृथक से उल्लेख करूँगा।